*किस धन का मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरे प्राणों को बचा ही नहीं पाएगा*...
*किस तन पे मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरी आत्मा का बोझ भी नहीं उठा पाएगा*
*किन साँसों का मैं अंहकार करूँ जो अंत में मेरा साथ छोड जाऐंगी*
*किन रिश्तों का मैं यहाँ आज अभिमान करूँ जो रिश्ते शमशान में पहुँचकर सारे टूट जाऐंगे*
*हाँ अब क्यों न यहाँ मैं अपने अच्छे कर्मों की पूंजी इकठ्ठी कर लूँ..... यहाँ भी और वहाँ भी साथ देते हैं ।....*
🚩‼जय श्री राम‼ 🚩